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आत्ममंथन का समय | राहुल गांधी

चुनावी पराजयों की पृष्ठभूमि में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी ने और अचानक बुलाई गई आपातकालीन बैठक में
ममता बनर्जी ने जिस रुख का परिचय दिया, वह आत्ममंथन नहीं है। गलतियां सुधार कर ही वे अपनी पार्टियों को मजबूती दे सकते हैं।

भाजपा और एनडीए का नेता चुने जाने के बाद संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के नवनिर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए जो कुछ कहा, उससे स्पष्ट है कि विराट जीत ने उन पर उम्मीदों और जिम्मेदारियों का जो भारी बोझ डाल दिया है, उसका उन्हें बखूबी एहसास है। इसी कारण उन्होंने 'सबका साथ, सबका विकास' के अपने नारे में 'सबका विश्वास' भी जोड़ा और संविधान की भावनाओं का पालन करते हुए गरीबी खत्म करने और अल्पसंख्यकों का भरोसा जीतने की जरूरत बताई। उन्होंने सांसदों को दिखाबे सर रहने और स॒विधाभोगी बनने या मंत्री पद की प्रत्याशा करने के बजाय जमीनी
स्तर पर काम करने की नसीहत दी। दूसरी बार पहले से ज्यादा
मजबूती के साथ चुने जाने के बाद भी नरेंद्र मोदी के संबोधन में गंभीरता और आत्ममंथन का भाव था। अलबत्ता उसी दिन पार्टी के सर्वोच्च नीति निर्धारक मंच कांग्रेस कार्य समिति में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने, और सुदूर कोलकाता में बुलाई गई आपातकालीन बैठक में तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल 
की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने-अपने इस्तीफे की जो पेशकश की, वह हार पर आत्ममंथन करने के बजाय खुद को जिम्मेदारी से अलग करने की आायुक कवायद ही ज्यादा थी। ऐसा इसलिए कि न तो कांग्रेस राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से हटाने के बारे में सोच सकती है, न ममता के नेतृत्व के बगैर तृणमूल की कल्पना की जा सकती है। 

राहुल गांधी ने हालांकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के पत्रमोह का हवाला दिया, और यह शिकायत भी की कि न में पार्टी को वरिष्ठों का बैसा सहयोग नहीं मिला। कार्यसमिति ने उनका इस्तीफा खारिज कस उन्हें तमाम जरूरी बदलाव करने को अधिकृत कर दिया है। 

कांग्रेस के लंबे इतिहास में यह लगातार दूसरी बार बदतर पराजय तो है ही, पार्टी एक दर्जन से अधिक राज्यों में खाता नहीं खोल पाई और कांग्रेस कार्यसमिति के ज्यादातर सदस्य चुनाव हार गए। अगर राहुल गांधी पार्टी संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने के साथ दूसरे साहसी कदम उठाएं, तभी उनकी संजीदगी का मतलब होगा। ऐसे ही, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को इस्तीफे की पेशकश करने के बजाय आक्रामकता और नकार की राजनीति छोड़नी चाहिए। राज्य में आज अगर उनकी जमीन खिसक रही है,
तो इसके लिए वही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।

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